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बाइबल शब्द एक यूनानी शब्द बीबलिया से लिया गया है जिसका अर्थ पुस्तक (बहु वचन)। बाइबल देखने मे एक पुस्तक है लेकिन ये अपने आप में एक पुस्तकालय है। बाइबल दो भागों में बँटी है, नया नियम और पुराना नियम। पुराना नियम या पहला नियम जिसे कहा जा सकता है इसमें यीशु मसीह के संसार आने से पहले व सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
नये नियम में यीशु के संसार मे आने के बाद व उनके और चेलों के द्वारा किये गए कार्यों के विषय मे जानकारी मिलती है।
बाइबल 66 पुस्तकों, 1189 अध्यायों, 31173 वचनों और 773692 शब्दों से मिलकर बनी है।
बाइबल की 66 पुस्तकों को एक ही समय पर और एक ही लेखक के द्वारा नहीं लिखा गया। बल्कि इन पुस्तकों को 40 अलग अलग लेखकों ने लिखा है। समय की यदि बात करें तो लगभग 1600 वर्ष यानी 1 हज़ार 600 वर्षों के समय अंतराल में इन सभी पुस्तकों को लिखा गया है।
इन सभी पुस्तकों को जिन लेखकों ने लिखा है उनमें अधिकतर अलग अलग समय, परिवेश और सभ्यता आदि से आये थे। आश्चर्यजनक तौर पर जब इन सभी लेखकों की पुस्तकों को पढ़ा जाता है तो इनमें कोई आपसी मतभेद नहीं मिलता। जिसका अर्थ है ये सभी लेखक एक ही परमेश्वर और उनके गुणों तथा स्वभाव के बारे में बात करते हैं। ऐसा केवल तभी संभव है जब परमेश्वर खुद लेखकों को प्रेरणा दें कि क्या लिखना है, जैसा बाइबल में लिखा भी है :
क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे॥ 2 पतरस 1:21
ऐसा अद्भुत अलौकिक गुणों वाली संसार में और कोई दूसरी पुस्तक नहीं है।
इन 5 पुस्तकों में परमेश्वर के द्वारा उनकी चुनी हुई प्रजा यानी इस्राएल को दिए गए कानून का वृतांत मिलता है
इन पुस्तकों में इस्राएल के इतिहास के बारे में पता चलता है।
ये काव्य और भजनों की पुस्तक कहलाती हैं।
ये बड़े भविष्यवक्ताओं की क़िताबें कहलाती हैं क्योंकि इनका जीवन और इनके काम अर्थात इनकी भविष्यवाणियां अत्यधिक मात्रा में पढ़ने व जानने सीखने के लिये हमारे पास उपलब्ध हैं।
ये छोटे भविष्यवक्ताओं के पुस्तक कहलाती हैं। यहां छोटे भविष्यवक्ता का अर्थ यह नहीं है कि ये खुद छोटे थे या इन्होंने कार्य कम मात्रा किये थे। इसका अर्थ यह है इनके जीवन और कार्यों के विषय में हमारे पास बोहुत अधिक जानकारी पढ़ने व सीखने के लिए उपलब्ध नहीं है।
यीशु मसीह के जन्म, उनके जीवन और कार्यों का वृतान्त इन 4 पुस्तकों में मिलता है।
यीशु के चेलों के द्वारा किये गये कार्य और जनके द्वारा स्थापित की गई प्रथम कलीसिया व अन्य कलीसियाओं का इतिहास इस एक पुस्तक में मिलता है।
यीशु के चेलों ने अलग अलग स्थानों में कई कलीसियाओं की स्थापना की। समय अंतराल में जब उन कलीसियाओं में गलत शिक्षा व गड़बड़ी आने लगी तो यीशु के चेलों या प्रेरितों ने चिट्ठी यानी पत्रियाँ लिख कर उन कलीसियाओं से इन विषयों पर चर्चा करी। रोमियों से यहूदा तक यही पत्रियाँ पायी जाती हैं।
यीशु के चेलों ने अलग अलग स्थानों में कई कलीसियाओं की स्थापना की। समय अंतराल में जब उन कलीसियाओं में गलत शिक्षा व गड़बड़ी आने लगी तो यीशु के चेलों या प्रेरितों ने चिट्ठी यानी पत्रियाँ लिख कर उन कलीसियाओं से इन विषयों पर चर्चा करी। रोमियों से यहूदा तक यही पत्रियाँ पायी जाती हैं।
ये बाइबल की अंतिम पुस्तक है जो भविष्यवाणियों की पुस्तक कहलाती है। यीशु अपने चेले यूहन्ना को आत्मा में स्वर्ग में ले गए और कई अद्भुद प्रकाशन और संदेश यूहन्ना को दिए। इन्ही का विवरण प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में मिलता है।
बाइबल एक ऐसी पुस्तक है जो सृष्टि और मानव जीवन के हर एक पहलू को स्पर्श करती है। जीवन की मूलभूत शिक्षायें, छोटे बड़े पाप व अपराध क्या हैं, पृथ्वी का वातावरण, विज्ञान के रहस्य और अन्य कई अनेक विषयों पर बाइबल हमें अद्भुद जानकारी देती है।
खुद बाइबल क्या कहती है अपने विषय में:-
हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए॥ 2 तीमुथियुस 3:16, 17
क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे॥ 2 पतरस 1:21
परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है। 1 कुरिन्थियों 2:10